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यीस्ट सभी स्त्रियों के शरीर में मौजूद रहता है। उनके पाचन मार्ग, त्वचा और नाजुक अंगों पर भी। यीस्ट का मिजाज बदल जाए तो इन्फेक्शन होते देर नहीं लगती। 5 में से एक स्त्री को इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है।वजाइनल इन्फेक्शन क्या है, किन कारणों से होता है और इसका समाधान कैसे हो सकता है, इन्हीं सब बातों पर विस्तार से बता रही हैं फोर्टिस हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञा डॉ. विमल ग्रोवर।

यीस्ट सभी स्त्रियों के शरीर में मौजूद रहता है। उनके पाचन मार्ग, त्वचा और नाजुक अंगों पर भी। यीस्ट का मिजाज बदल जाए तो इन्फेक्शन होते देर नहीं लगती। 5 में से एक स्त्री को इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है।वजाइनल इन्फेक्शन क्या है, किन कारणों से होता है और इसका समाधान कैसे हो सकता है, इन्हीं सब बातों पर विस्तार से बता रही हैं फोर्टिस हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञा डॉ. विमल ग्रोवर।

बिलकुल भी अनदेखी न करें यीस्ट संक्रमण (वैजिनल कैंडिडिआसिस )की 


यीस्ट इन्फेक्शन को डॉक्टरी भाषा में वजाइनल क्रश कहते हैं। यह वजाइना का इन्फ्लेमेशन है, जो कैंडिडा एल्बीकैंस नामक फंगस के इन्फेक्शन के कारण होता है। यूं तो कैंडिडा एल्बीकैंस योनि में ही रहता हैं, लेकिन जब तक स्त्री स्वस्थ रहती है और यीस्ट संतुलित रहता है, इसका पता नहीं चलता। इन्फेक्शन की नौबत तब आती है जब कैंडिडा एल्बीकैंस का विकास सामान्य की अपेक्षा कई गुना तेजी से होने लगता है। हालांकि यीस्ट इन्फेक्शन ज्यादातर मामलों में गंभीर या जानलेवा नहीं होता, लेकिन इसकी वजह से योनि में तेज खुजली व रिसाव की शिकायत हो सकती है।

योनि संक्रमण

गर्मियों के मौसम में पसीना अधिक निकलता है, जिससे यीस्ट (खमीर) को पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है। शरीर में हमेशा यीस्ट (खमीर) होता है, लेकिन कभी-कभी इसकेकारण वजाइना संक्रमित हो जाती है। मसलन एंटीबायोटिक्स लेने या क्लोरीन का प्रभाव पडने से योनि का वातावरण बदलता है और यीस्ट बेकाबू होने लगता है।

कारण

आमतौर पर हर 5 स्त्रियों में से एक स्त्री की वजाइना में कैंडिडा फंगस पाया जाता है, लेकिन यह आमतौर पर बीमारी का तब तक कारण नहीं बनता, जब तक कि इसमें जबरदस्त वृद्धि न हो। फंगस की वृद्धि को इम्यून सिस्टम और योनि में रहने वाले हानिरहित बैक्टीरिया काबू में रखते हैं। अगर इन बैक्टीरिया का सफाया एंटीबायोटिक या शुक्राणुनाशी दवाओं से हो जाता है, तो फंगस की वृद्धि तेजी से हो सकती है। साथ ही बीमारी के लक्षण उभर सकते हैं।

उन स्त्रियों को भी यीस्ट इन्फेक्शन हो सकता है, जिनके पार्टनर को कैंडिडा का इन्फेक्शन पहले से ही हो। डायबिटीज से पीडित स्त्रियों को भी यह इन्फेक्शन होने का खतरा ज्यादा रहता है। मेनोपॉज, स्तनपान, प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम और कुपोषण की स्थिति में हार्मोस में आने वाले बदलावों के कारण भी यीस्ट की शिकायत हो सकती है। यीस्ट इन्फेक्शन में सबसे अहम भूमिका एंटीबायोटिक्स की ही होती है, क्योंकि यह हानिकारक बैक्टीरिया के साथ-साथ अच्छे बैक्टीरिया का भी सफाया कर देते हैं, जिससे यीस्ट को फैलने का पूरा मौका मिल जाता है।

लक्षण

इस इन्फेक्शन के लक्षणों को धीरे-धीरे उभरने में कई दिन लग सकते हैं। इसके मुख्य लक्षण हैं - वजाइना मार्ग से गाढा, सफेद रंग का डिस्चार्ज, जो देखने में चीज या कच्चे पनीर के पानी जैसा होता है। इसमें से खट्टी या मछली जैसी दुर्गध आती है।

योनि व उसके आसपास तेज खुजली या खारिश व जलन रहती है। इसके इलाज में लापरवाही बरती जाए या सही इलाज न कराया जाए तो वजाइना और उसके आसपास की त्वचा में सूजन व लाली आ जाती है। जलन और त्वचा के फटने का भी खतरा रहता है।

बचाव

-स्विमिंग के बाद सूखे कपडे पहन कर यीस्ट संक्रमण से बचा जा सकता है।

-ऐसे में छिद्र वाली पैंटीहौज का इस्तेमाल करने की आदत डालनी चाहिए। पोली-प्रोयाइलीन, सिंथेटिक मटीरियल जो सूती कपडों से भी बेहतर सुरक्षा देते हैं, का इस्तेमाल करना चाहिए।

-सक्रिय बैक्टीरिया कल्चर के साथ दही खाने या योनि में सामान्य बैक्टीरिया स्तरों को बढाने के लिए एसिडोफाइलस भी लेना चाहिए। इसके अलावा काफी मात्रा में क्रेनबेरी जूस भी पीना चाहिए। यह योनि को एसिडिक बना देता है और यीस्ट के प्रति प्रतिरोधी भी बनाता है।

-कुछ स्त्रियों में चीनी व एल्कोहॉल यीस्ट के लिए शक्तिशाली भोजन का काम करती हैं, इसलिए उनमें कमी करने से मदद मिल सकती है। यीस्ट एक ऐसा जीव है, जो शरीर में मौजूद अतिरिक्त शुगर पर जिंदा रहता है। इसलिए खानपान में बहुत अधिक चीनी का इस्तेमाल यीस्ट इन्फेक्शन का कारण बन सकता है। कई बार चीनी का इस्तेमाल न के बराबर करने भर से ही यीस्ट भूखों मर जाता है और समस्या खत्म हो जाती है। जहां तक सभंव हो सॉफ्ट ड्रिंक्स, शर्बत, कैंडी, कुकीज आदि से परहेज करें।

-यदि फिर भी संक्रमण हो जाता है तो गाइनी-लोट्रिमिन या मानिस्टेट जैसे फंगसरोधी क्रीमों से मदद मिल सकती है। बोरिक एसिड से युक्त सपो‌र्ट्स को एक सप्ताह तक हर रात वजाइना में लगाने से भी आराम मिलता है। संक्रमण के लिए कभी-कभी एसिडोफाइलस की संस्तुति की जाती है।

-अगर आपको लगता है कि आपको यीस्ट संक्रमण है तो उसका उपचार करने से पहले अपनी गायनिकोलॉजिस्ट से संपर्क करें ताकि सुनिश्चित हो सके कि वह यीस्ट इन्फेक्शन है या नहीं।

इसमें मछली जैसी दुर्गध आती है। कई स्त्रियों को खुजली की समस्या भी होती है और इससे स्वाभाविक रूप से वे एंटीफंगल का इस्तेमाल करने लगती हैं। समस्या यह है कि खारिश या खुजली किसी अन्य तरह की स्वास्थ्य समस्या के कारण भी हो सकती है। इसलिए स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिलने में संकोच व देरी न करें।

साफ-सफाई का रखें ध्यान

-वजाइना के बाहरी हिस्से को साफ व सूखा रखें।

-इन्फेक्शन होने पर कोई शर्म या संकोच न करें, बल्कि फौरन स्त्री रोग विशेषज्ञा से मिलकर सुनिश्चित करें कि वजाइनल ईचिंग की असली वजह क्या है।

-जब तक लक्षण पूरी तरह समाप्त न हो जाए सेक्स संबंध न बनाएं।

-समस्या दोबारा न हो इसलिए अपने पति का इलाज भी जरूर करवाएं।

-पीरियड्स के दौरान सफाई का खयाल रखें। पैड जल्दी-जल्दी बदलें। वजाइना को सादे पानी से ही धोएं। साबुन का इस्तेमाल न करें। बबल बाथ न लें, न ही सेंटेड पैंटी लाइनर का इस्तेमाल करें।

चिंता न करें

1. अगर आप वजाइना की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखती हैं।

2. किसी प्रकार का डिस्चार्ज नहीं होता।

3. वजाइना और उसके आसपास लाली, खुजली या जलन नहीं है।

सचेत हो जाएं

1. जो स्त्रियां चीनी का सेवन अधिक करती हैं।

2. स्विमिंग के बाद सूखे कपडे नहीं पहनतीं।

3. पसीने से आपके कपडे भीगे रहते हैं।

4. वजाइना के आसपास कभी-कभी खारिश होती है और कुछ दिन में ठीक हो जाती है।

तुरंत जांच कराएं

1. वजाइना मार्ग से गाढा, सफेद रंग का डिस्चार्ज जैसा होता है।

2. डिस्चार्ज से दुर्गध आती है।

3. वजाइना व उसके आसपास तेज खुजली या खारिश व जलन रहती है। 

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